जानिए भगवान विष्णु के श्री हरि और नरायण नामों का रहस्य

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धर्म डेस्क / ज्योति त्रिवेदी : संसार के पालनहार भगवान विष्णु की विशेष पूजा गुरुवार को की जाती है। इस दिन भक्त पूरे विधि – विधान के साथ भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। हिंदू धर्म शास्त्र के अनुसार गुरुवार को भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से जीवन के सभी संकटों से छुटकारा मिलता है। साथ ही वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है।

पुराणों में भगवान विष्णु के दो रूप बताए गए हैं। एक रूप में तो उन्हें बहुत शांत, प्रसन्न और कोमल बताया गया है और दूसरे रूप में प्रभु को बहुत भयानक बताया गया है। श्रीहरि, काल स्वरूप शेषनाग पर आरामदायक मुद्रा में बैठे हैं। कहा जाता है कि भगवान विष्णु का शांत चेहरा कठिन परिस्थितियों में व्यक्ति को शांत रहने की प्रेरणा देता है। भगवान विष्णु का मानना है कि समस्याओं का समाधान शांत रहकर ही सफलतापूर्वक ढूंढा जा सकता है।

भगवान विष्णु के ‘हरि’ नाम का रहस्य


भगवान विष्णु को ‘हरि’ नाम से भी बुलाया जाता है। हरि की उत्पत्ति हर से हुई है। “हरि हरति पापानि” का अर्थ है – हरि भगवान हमारे जीवन में आने वाली सभी समस्याओं और पापों को दूर करें। इसीलिए भगवान विष्णु को हरि भी कहा जाता है, क्योंकि सच्चे मन से श्रीहरि का स्मरण करने वालों को कभी निराशा नहीं मिलती। कष्ट और दु:ख चाहे जितने भी हो, श्रीहरि सब हर लेते हैं।

भगवान विष्णु के ‘नारायण’ नाम का रहस्य


भगवान विष्णु अपने भक्तों पर हर रूप और हर स्वरूप से कृपा बरसाते हैं और इसीलिए वो जगत के पालनहार कहलाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान विष्णु का नाम नारायण क्यों है? उनके भक्त उन्हें नारायण क्यों बुलाते हैं? एक पौराणिक कथा के अनुसार पानी का जन्म भगवान विष्णु के पैरों से हुआ है। पानी को नीर या नर भी कहा जाता है।
भगवान विष्णु भी जल में ही निवास करते हैं। इसलिए नर शब्द से उनका नारायण नाम पड़ा है। इसका अर्थ ये है कि पानी में भगवान निवास करते हैं। इसीलिए भगवान विष्णु को उनके भक्त ‘नारायण’ नाम से बुलाते हैं।

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