किस दिन मनाई जाएगी रविदास जयंती

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धर्म डेस्क / ज्योति त्रिवेदी : आईए जानते हैं उनके बारे में कुछ खास बातें । 24 फरवरी दिन शनिवार को माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाएगी रविदास जयंती। रविदास जी एक महान संत थे और यह सदैव अपनी भक्ति में लीन रहते थे हमेशा परोपकार किया करते थे दूसरे के सुख-दुख का ध्यान इनके पास कोई दिखावा नहीं था यह हमेशा कहते थे कि अपने मन को हमेशा साफ रखना चाहिए यह धार्मिक पर्वती के इंसान थे इनका जन्म माघ की पूर्णिमा के दिन काशीपुरी में हुआ था इनके पिता का नाम रग्घू था संतोखदाश था और उनकी माता का नाम कर्मा बाई था कलसा देवी रविदास जी और कबीर दास जी एक ही गुरु के शिष्य थे दोनों गुरु भाई थे जिन्होंने एक ही गुरु जी के से शिक्षा ली थी और यह ब्रह्मचर्य का पालन करते थे गुरु जी अपने शिष्यों को ब्रह्मचर्य के घर से आटा की भिक्षा लेने के लिए भेजते थे ।

एक दिन उन शिष्यों को एक बनिए ने रोक लिया और उन्हें कहा कि आज हम हम भिक्षा देंगे और शिष्य ने कहा नहीं हमारे गुरु जी का आदेश है कि केवल हम ब्रह्म ब्राह्मणों के घर से ही भिक्षा लेते हैं तब उस उसे बनिए को कहा कि बताना नहीं फिर उस बनिए ने उस शिष्य को दे दिया और जैसे ही गुरु जी ने उसे आटे की रोटियां बनाकर खाई तो वह समझ गए कि यह आटा ब्राह्मण के घर का तो नहीं हो सकता है फिर उन्होंने अपने शिष्य से पूछा कि यह भिक्षा कहां से लाए हो तो शिष्यों ने कहा कि गुरु जी यह आटा हमें एक बनिए ने दिया है तब गुरु जी ने अपने शिष्यों को भेज कर उसे बनियों को बुलाया और बनिए से पूछा कि आटा तो तुम्हारे घर का नहीं हो सकता तब बनिया ने बताया कि यह आटा एक रविदास के घर का है तब गुरु जी ने रैदास को बुलाया और कहा कि यह आटा तुमने मुझे क्यों दिया ।

तब उसे रैदास ने कहा कि गुरु जी मुझे कोई संतान नहीं थी इसलिए मैंने आटे का दान आपको किया अगर मैं सामने से आपको यह आता देता तो आप कदापि नहीं लेते इसलिए मैं बनिया के हाथों से आया आपको दिलाया तब गुरु जी ने कहा तुमने मेरे साथ छल किया है मेरा धर्म नष्ट किया है इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं और कहा कि हे शिष्य मैं तुम्हें श्राप दिया कि मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम इस बनिए के घर में जन्म लो और उनकी सेवा करो इस तरह गुरुद्वारा दिए दंड को ब्रह्मचर्य शिष्य ने सहस्त्र स्वीकार किया और माघ की पूर्णिमा के दिन काशी पुरी में इनका जन्म हुआ और जन्म के उपरांत इन्होंने अपनी माता का दूध बिल्कुल नहीं पिया इस बात पर उनकी माता बहुत दुखी और परेशान रहने लगी तभी काशीपुरी में रामानंद महाराज जी पधारे थे तो सब ने उनके दर्शन किया सबके साथ में उनकी माता भी अपने बच्चों को गुरु जी के दर्शन के लिए ले गई और कहा कि है गुरुदेवयह बच्चा ना मेरा दूध पीता है तो गुरु जी ने उसके कान में मंत्र सुनाया और कहा कि है शिष्य अब तुम अपने इस मां के गर्भ से जन्म लिया है अब इसका दूध तो तुम्हें पीना ही है मैंने तुम्हें गुरु दीक्षा दी है तब रविदास जी ने कहा कि मुझे गुरु दीक्षा दिए पर मेरी मां तो आज भी चर्मकार है उसे भी पहले गुरु दीक्षा दीजिए क्योंकि बिना गुरु दीक्षा के मनुष्य बिल्कुल पशु के समान होता है इसलिए मैं दूध तभी पी सकता हूं जब मेरी मां भी गुरु दीक्षा लेंगी ।

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