गणगौर आज, भगवान शिव व माता पार्वती से जुड़ी है

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हिंदू धर्म में कई ऐसे व्रत हैं जो अखंड सौभाग्य व परिवार की मंगल कामना के लिए रखे जाते हैं। अखंड सौभाग्य का प्रतीक गणगौर व्रत सुहागिनों के लिए बेहद खास होता है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अखंड सौभाग्य का प्रतीक यह त्योहार मनाया जाता है। इस साल गणगौर तीज 4 अप्रैल, सोमवार को है।

गणगौर तीज शुभ मुहूर्त-

तृतीया तिथि 3 अप्रैल को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट से शुरू होगी, जो कि 4 अप्रैल को दोपहर 1 बजकर 54 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार इस व्रत को 4 अप्रैल सोमवार को रखा जाएगा।

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गणगौर महत्व-

गणगौर पूजन में मां पार्वती व भगवान शंकर की पूजा की जाती है। गणगौर दो शब्दों से मिलकर बना है। गण का अर्थ शिव और गौर का अर्थ माता पार्वती है। शास्त्रों के अनुसार, पर्वतराज हिमालय की पुत्री माता पार्वती ने अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की थी। उसी तप के प्रभाव से भगवान शिव को उन्होंने पति रूप में पाया था। इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को और माता पार्वती ने समस्त स्त्री जाति को अखंड सौभाग्य का वरदान दिया था। मान्यता है कि तभी से इस व्रत की शुरुआत हुई।

गणगौर व्रत पूजा विधि-

गणगौर होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक यानी 17 दिनों तक चलने वाला त्योहार है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता गवरजा (मां पार्वती)  होली के दूसरे दिन अपने पीहर आती हैं और आठ दिनों के बाद भगवान शिव (इसर जी) उन्हें वापस लेने के लिए आते हैं। फिर चैत्र शुक्ल तृतीया को उनकी विदाई होती है। होली के दूसरे दिन यानी कि चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से सुहागिन महिलाएं और कुंवारी कन्याएं मिट्टी के शिव जी यानी की गण एवं माता पार्वती यानी की गौर बनाकर प्रतिदिन पूजन करती हैं। इन 17 दिनों में महिलाएं रोज सुबह उठ कर दूब और फूल चुन कर लाती हैं। उन दूबों से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती हैं। फिर चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं। दूसरे दिन यानी कि चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को शाम के समय उनका विसर्जन कर देती हैं। गणगौरों के पूजा स्थल गणगौर का पीहर और विसर्जन स्थल ससुराल माना जाता है। विसर्जन के दिन सुहागिनें सोलह श्रृंगार करती हैं और दोपहर तक व्रत रखती हैं।

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