धर्म डेस्क / ज्योति त्रिवेदी : सनातन धर्म में शनिदेव को न्याय का देवता कहा जाता है। कहते हैं कि जिस व्यक्ति के कर्म जैसे होते हैं, शनिदेव उसे वैसा ही फल देते हैं। ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह के दुष्प्रभाव से बचने के लिए शनिवार की शाम को उपाय करने की सलाह दी जाती है। ऐसी मान्यता है कि शनिवार को सूर्यास्त के बाद अगर शनिदेव की आराधना की जाए तो उसका फल अधिक मिलता है। माना जाता है कि शनिवार की शाम को सच्चे मन से शनिदेव की पूजा करने से साढ़ेसाती, ढैय्या और शनि ग्रह के दुष्प्रभावों से मुक्ति पाई जा सकती है।
शनिवार की शाम हाथ-मुंह धोकर शनिदेव की पूजा विधि-विधान से करें। ध्यान रखें कि इस दिन काले, नीले और स्लेटी रंग के वस्त्र नहीं पहनें।
50 ग्राम उड़द की दाल, 50 ग्राम काले तिल, 50 ग्राम सरसों का तेल, ढाई मीटर काला कपड़ा, 5 लोहे की कील और कोई भी फल या मिठाई लेकर शनिदेव के मंदिर जाएं। शनिदेव के मंदिर में जाकर काले रंग के आसन पर बैठें फिर भगवान शनिदेव के रूप, गुण, स्वभाव और दयालुता का ध्यान करते हुए उन्हें नमन करें।
इसके बाद शनिदेव का चालीसा और स्तोत्र का पाठ करें। पाठ पूरा हो जाने पर ‘ॐ प्रां प्रीं प्रों सः श्नैचराय नमः’ मंत्र का 11 माला जाप करें।
जाप करने के दौरान यह ध्यान रखें कि मंत्रों की जाप संख्या सही हो और उनका उच्चारण भी ठीक तरह से किया जाए।
मंत्र जाप पूर्ण होने पर शनिदेव पर ढाई मीटर काला कपड़ा अर्पित करें। साथ ही 50 ग्राम काली उड़द की दाल, 50 ग्राम काले तिल, 50 ग्राम सरसों का तेल और 5 लोहे की कील भी चढ़ाएं।
अगर आप शनिदेव के मंदिर जाने में सक्षम नहीं हैं तो आप यह दान किसी कुष्ठ रोगी को भी कर सकते हैं। ऐसी मान्यता है कि शनिदेव कुष्ठ रोगियों की सहायता करने से बहुत प्रसन्न होते हैं इसलिए अगर संभव हो तो कुष्ठ रोगियों को शनिवार के दिन कोई वस्तु दान जरूर करें।
शनिदेव की आरती करते समय इस बात का ध्यान रखें कि आप शनिदेव की प्रतिमा के ठीक सामने खड़े न हो। संभव हो तो थोड़ा तिरछा होकर आरती करें।
आरती करने के बाद स्वयं भी आरती लें और शनिदेव को दंडवत प्रणाम करें।
इसके बाद शनिदेव से प्रार्थना करें कि वह साढ़ेसाती, ढैय्या और शनि ग्रह के दुष्प्रभावों से आपको मुक्ति दें और आपके जीवन में सुख-समृद्धि आए।