फरवरी माह में कब मनाया जाएगा दूसरा प्रदोष व्रत

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फरवरी माह में कब मनाया जाएगा दूसरा प्रदोष व्रत

ज्योति त्रिवेदी / धर्म डेस्क : आईए जानते हैं मुहूर्त, हिंदू धर्म में व्रत और पूजा का बहुत ही बड़ा महत्व होता है भगवान भोलेनाथ को पाप के नासन हार कहा जाता है जिस प्रकार भगवान विष्णु को जगत का पालनहार कहा जाता है ठीक उसी प्रकार भगवान भोलेनाथ को पाप का नासन हार कहा जाता है भगवान भोलेनाथ सभी के दुख कष्ट श्राप को हर लेते हैं इसलिए सभी को प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए क्योंकि प्रदोष व्रत करने से भगवान भोलेनाथ अत्यधिक प्रसन्न होते हैं और उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता है इसलिए उसे खुशी में भगवान भोलेनाथ प्राणियों को मनचाहा प्रधान वरदान प्राप्त करते हैं।

प्रदोष व्रत के दिन हमें क्या करना चाहिए।

प्रदोष व्रत के दिन हमें सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर के अपने घर की साफ सफाई कर करके नहा धोकर स्वच्छ कपड़े पहनना चाहिए और किसी मंदिर में या अपने घर के मंदिर में यह शिवालय में भगवान भोलेनाथ का पूजन करना चाहिए क्योंकि आप जब तक स्नान नहीं करते हैं तब तक आपका व्रत मान्य नहीं की किया जाता है जब आप नहा धो करके व्रत पूजा करते हैं तभी से आपकी व्रत की शुरुआत होती है इसलिए किसी भी व्रत में हमें सर्वप्रथम स्नान सुबह करके एक लोटा जल अवश्य चढ़ाना चाहिए और फिर स्वच्छ कपड़े पहन करके हमें पूजा करने के बाद अपने मन में ओम नमः शिवाय का जाप करना चाहिए और भगवान भोलेनाथ की याद में रहना चाहिए कि आज हम भगवान भोलेनाथ का व्रत है और भगवान भोलेनाथ हमारे साथ है हमें उनकी याद में ही रहना चाहिए ।

प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत करना चाहिए। प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि दिन बुधवार दूसरा प्रदोष व्रत 21 फरवरी 2024 सुबह 11:27 पर मनाया जाएगा प्रदोष व्रत और व्रत की समाप्ति तिथि 22 फरवरी 2024 दोपहर 1:00 बजे से 21 मिनट पर समाप्त होगा प्रदोष व्रत पूजा का समय सांय काल 6:15 से लेकर रात्रि 8:45 तक होगी। पूजा विधि संध्या काल का जो समय होता है उसे प्रदोष काल कहते हैं जिस प्रकार सप्ताह के सभी दि नों के नाम अलग-अलग होते हैं ठीक उसी प्रकार प्रदोष व्रत के भी अपने-अपने अलग-अलग नाम होते हैं प्रदोष का व्रत चंद्र देव से है । सबसे पहले किसने किया था प्रदोष काल का व्रत।

प्रदोष व्रत क्यों मनाया जाता है सबसे पहले इस व्रत को किसने किया था।

प्रदोष का व्रत चंद्र देव से है सबसे पहले इसव्रत को चंद्र देव ने मनाया था चंद्र देव छय रोग से मुक्ति पाने के लिए यह व्रत रखा था चंद्र देवता का विवाह राजा दक्ष की पुत्री 27 नक्षत्र कन्याओं के साथ हुआ था इन कन्याओं को 27 योग थे एक 27 योग बनने से ही एक चंद्रमा पूरा होता है चंद्रमा की 21 पतिया थी जिसमें चंद्रमा रोहिणी से सबसे ज्यादा प्रेम करते थे क्योंकि रोहिणी बहुत सुंदर और सुशील थी जिसे चंद्रमा रोहिणी को सबसे ज्यादा प्रेम करते हैं जिस कारण चंद्रमा के 26 पतिया काफी दुखी और परेशान रहती थी और 26 बेटियों ने अपनी दुख भरी कहानी अपने पिता राजा दक्ष को सुनाई राजा दक्ष ने अपनी बेटियों के इस दुख के कारण राजा दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दे दिया और कहा है चंद्रमा हम तुम्हें श्राप देते हैं कि तुम्हें छह रोग हो जाए और तुम छह रोग से ग्रसित रहो दुखी रहो इस श्राप के कारण चंद्रमा की सभी कलाएं नष्ट होने लगी धीरे-धीरे और इसका प्रभाव पृथ्वी पर भी पड़ा चंद्रमा छह रोग के कारण काफी परेशान थे और उनकी जब मृत्यु की घड़ी बिल्कुल समीप आने लगी तो वहां पर नारद जी प्रकट हुए और उन्होंने उन्हें छह रोग से मुक्ति पाने का उपाय बताया कहा कि है चंद्रमा अगर तुम छह रोग से मुक्ति पाना चाहते हो तो भगवान शिव की आराधना करो वही तुम्हारे सभी कष्ट समाप्त कर सकते हैं सूर्यास्त के 72 मिनट पहले और सूर्यास्त के 72 मिनट बाद तक का समय प्रदोष काल का समय कहलाता है चंद्रदेव ठीक विधि विधान से भगवान भोलेनाथ का पूजन अर्चन किया जिससे भोलेनाथ प्रसन्न होकर मृत्यु के कष्ट से छुटकारा पाकर उन्हें दोबारा जीवन दान प्रदान किया और भोलेनाथ उनके द्वारा की हुई व्रत पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें अपने सिर पर धारण कर लिया। तभी से सभी पृथ्वीवासी अपने कष्टों से छुटकारा पाने के लिए प्रत्येक माह की त्रयोदशी को प्रदोष का व्रत किया जाता है जो मनुष्य प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ का व्रत पूजन अर्चन करता है उसके सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं।

प्रदोष व्रत में हमें क्या नहीं करना चाहिए।

प्रदोष व्रत में सबसे पहले हमें नमक का सेवन नहीं करना चाहिए ,उसके बाद हमें भोजन बिल्कुल नहीं करना चाहिए, किसी की चुगली नहीं करनी चाहिए, किसी की बुराई नहीं करना चाहिए, अगर अपने दरवाजे कोई आता है तो उसका अपमान नहीं करना चाहिए, गौ माता की सेवा करनी चाहिए, संध्या काल में गौ माता को गुड़ के साथ रोटी अवश्य खी लानी चाहिए, काले कुत्ते को घी और रोटी खिलानी चाहिए, चारपाई पर विश्राम नहीं करना चाहिए ,इस दिन हमें धरती पर ही कुश की चटाई पर विश्राम करना चाहिए, साफ स्वच्छ बिस्तर पर सोना चाहिए।

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