नवरात्र के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की उपासना की जाती है। मां के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्द्ध चंद्रमा विराजमान है, इसीलिए मां का नाम चंद्रघंटा पड़ा। देवी पुराण के अनुसार, जब भगवान शिव जब विवाह करने आए तो मां पार्वती ने देवी चंद्रघंटा का रूप धारण कर विवाह किया। मां की उपासना से अलौकिक शक्ति प्राप्त होती है।
मां चन्द्रघंटा की उपासना से आध्यात्मिक शक्ति मिलती है। मां को शक्ति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। माता चंद्रघंटा का वाहन सिंह है। मां हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहने वाली मुद्रा में होती हैं। मां की आराधना से निर्भयता के साथ सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है। मां की पूजा में उपासक को सुनहरे और पीले रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। मां को प्रसन्न करने के लिए सफेद कमल और पीले गुलाब की माला अर्पित करें। माता चंद्रघंटा को शहद का भोग लगाया जाता है। मान्यता के अनुसार मां चंद्रघंटा को मीठी खीर प्रिय है। मां को गाय के दूध से बनी खीर का भोग लगाएं। इस दिन कन्याओं को खीर, हलवा या मिठाई खिलाने से मां प्रसन्न होकर भक्तों की हर बाधा दूर करती हैं। मां को सिंदूर, अक्षत, गंध, धूप, पुष्प अर्पित करें।