रायबरेली : शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी, ख्यातिलब्ध फीरोज गांधी महाविद्यालय आज भ्रष्टाचार और राजनीति का अखाड़ा बन चुका है। बताते चलें कि मई–जून 2024 में संपन्न हुई सम सेमेस्टर परीक्षा में बीए षष्टम सेमेस्टर हिंदी विषय का आंतरिक मूल्यांकन के जो भी अंक हिंदी विभाग के शिक्षकों द्वारा दिए गए थे, उन अंकों के स्थान पर किसी कर्मचारी द्वारा अंकों में फेर बदल करके विद्यार्थियों के भविष्य से खिलवाड़ किया गया। यहां तक शून्य अंक भी दिए गए थे। अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर हिंदी विषय के विद्यार्थियों की पूरी सूची और कॉलेज का गोपनीय लॉगिन पासवर्ड किसके द्वारा और किसको दिया गया। इस संबंध में जब हिंदी विभाग को पता चला तो तुरंत आवश्यक कार्यवाही की मांग प्राचार्य और कालेज प्रशासन से लिखित रूप से की गई। किंतु परिणाम ढांक के तीन पात होकर रह गये। विद्यार्थियों के नंबरों में चोरी से फेर बदल करने वाले के खिलाफ प्राचार्य डॉ मनोज कुमार त्रिपाठी या हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो बद्री दत्त मिश्र ने अभी तक कोतवाली में तहरीर तक नहीं दिया है। क्या दोषियों को बचाने की मंशा है? सोशल मीडिया से प्राप्त खबर के अनुसार मनोविज्ञान विभाग के नवनियुक्त शिक्षक डॉ आलोक कुमार सिंह ने हिंदी विषय के अंकों में फेर बदल अध्यक्ष हिन्दी विभाग प्रोफेसर बद्री दत्त मिश्र द्वारा दी गई सूची के आधार पर किया है। जब हिंदी विभाग के अध्यक्ष को यह लगा कि इसमें हम बुरी तरह से फँस चुके हैं तथा कॉलेज प्रशासन आलोक सिंह के खिलाफ आवश्यक कार्यवाही नहीं करेगा तो मौका मिलते हीआयोग द्वारा चयनित प्राचार्य डॉ मनोज कुमार त्रिपाठी के मात्र एक दिन के अवकाश पर जाते ही कार्यवाहक प्राचार्य एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग प्रोफेसर बद्रीदत्त मिश्र ने प्रबंध तंत्र की मिलीभगत से डॉ आलोक प्रताप सिंह को अपने हस्ताक्षर युक्त पत्र से निलंबित कर दिया। वास्तव में इस प्रकरण पर यदि गहराई से जांच की गई होती जैसे प्रयुक्त लैपटॉप, मोबाइल, कॉलेज का लॉगिन–पासवर्ड रखने वालें या उसे देने वाले जिम्मेदार सदस्यों (प्राचार्य या कार्यालय कर्मचारी) से कड़ी पूंछतांछ की गई होती तो शायद आलोक कुमार सिंह निर्दोष साबित हो सकते थे और सच्चाई खुलकर सामने आ सकती थी और कई मुखौटा धारियों के मुखौटे उतर जाते। सोचने वाली बात तो यह है कि आलोक कुमार सिंह ने भी अपने निलंबन के खिलाफ अभी तक कोई मुकदमा दर्ज नहीं कराया? वहीं दूसरी तरफ डॉ आलोक कुमार सिंह ने स्वयं को जब निर्दोष साबित करने के उददेश्य से प्रोफेसर बद्री दत्त मिश्र से प्राचार्य जी को प्रेषित विभागीय पत्राचार से संबंधित प्रामाणिक कागजात उपलब्ध कराने का कई बार लिखित निवेदन किया, किंतु डॉ मिश्र ने उनको कोई कागजात अभी तक नहीं दिया। अब तो इस प्रकरण से जुड़ी एक बात और सामने आ रही है कि हिन्दी विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर संजय सिंह को बदनाम करने की बदनीयति से ही यह साजिश रची गई थी। जब यह बात प्रोफेसर सिंह को पता चली तो उन्होंने समस्त घटनाक्रम को क्रमवार अपने शिक्षक साथियों के बीच रखा एवं शिक्षक संघ एफ जी कॉलेज को भी अवगत कराया, जिससे उक्त प्रकरण पर तत्काल आवश्यक कार्यवाही हो और सच्चाई खुलकर सबके सामने आए। इस संबंध में प्रोफेसर संजय सिंह प्राचार्य फ़िरोज़ गांधी कॉलेज को सम्बोधित एक पत्र देकर उसकी कॉपी समस्त शिक्षक संगठनों को प्रेषित कर दी है। जिसमें उन्होंने महाविद्यालय की गरिमा बनाए रखने के लिए और विद्यार्थियों के भविष्य के साथ जानबूझकर खिलवाड़ करने वाले दोषियों पर वैधानिक कार्यवाई की मांग की है।
इतना ही नहीं एक अन्य प्रकरण में चतुर्थ सेमेस्टर के हिंदी विषय (हिंदी उपन्यास साहित्य) के लगभग 30 विद्यार्थियों को शून्य अंक दिए गए? जो नियम विरुद्ध भी है और साथ ही साथ बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ भी है। जिस कॉलेज की अच्छी छवि और प्रतिष्ठा को देखकर
जहां विद्यार्थी अपने सुनहरे सपने लेकर प्रवेश लेता है और साकार करने के लिए अथक प्रयास करने में कोई कसर नहीं छोड़ता, वही फीरोज गांधी कॉलेज का प्रबंध तंत्र भी विद्यार्थियों को आर्थिक रूप से चोट पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। ग्रामीणांचल से किसान, मजदूर के बच्चे इस महाविद्यालय में पढ़ने आते हैं। उनमें से अधिकतर विद्यार्थी टैक्सी, बस, ट्रेन से आते हैं, तो कोई शहर में ही किराए पर रहने वाला विद्यार्थी पैदल भी आता है। फिर भी महाविद्यालय में पंजीकृत लगभग 5000 हजार छात्र छात्राओं से 600 रुपए प्रति छात्र साइकिल स्टैंड फीस अनिवार्य रूप से ली जाती है? वास्तव में जो विद्यार्थी साइकिल से आते हैं, सिर्फ उन्हीं से साइकिल स्टैंड फीस ली जानी चाहिए औरों से नहीं।जब से फीरोज गांधी कालेज लखनऊ विश्वविद्यालय से सम्बद्ध हुआ है, उसके बाद जबरन ऐसे ही सभी बच्चों को अधिक फीस देनी पड़ती है। कारनामे तो गजब ही हैं जैसे 20 रुपए में बनने वाला परिचय पत्र के लिए 100 रुपया प्रति विद्यार्थी वसूला जा रहा है।
प्रत्येक माइनर प्रोजेक्ट वाले बच्चों से भी लैब की फीस ली जा रही है, जबकि यह केवल मेजर प्रोजेक्ट वालों के लिए ही आनिवार्य है, सबके लिये नहीं।
उत्तर प्रदेश सरकार की स्वामी विवेकानंद युवा सशक्तिकरण निःशुल्क स्मार्टफोन वितरण की महत्वाकांक्षी योजना के अंतर्गत सत्र 2022-2023 के पी.जी क्लासेज के और बी.एड के समस्त छात्रों का डाटा ही कॉलेज के नोडल अधिकारी प्रोफेसर बद्री दत्त मिश्र ने शासन को नहीं भेजा, इसलिए किसी भी विद्यार्थी को टैबलेट नहीं मिला था। वर्तमान सत्र में भी कई विद्यार्थियों का भी डाटा शासन को नहीं भेजा गया ।इसलिए उक्त छात्र छात्राओं को सरकार की मंशानुरूप निःशुल्क टैबलेट नहीं मिला। टैबलेट न पाने से वंचित एम.ए हिंदी के प्रतिभा, सुमित, गुलाम अली, दिव्यांशी त्रिवेदी, ललित कुमार सहित परास्नातक की अन्य विषयों के लगभग 35 छात्र छात्राओं ने 5 अगस्त 2024 को जिलाधिकारी रायबरेली को कॉलेज के खिलाफ शिकायती प्रार्थना पत्र दिया था। क्योंकि स्मार्टफोन/टैबलेट नोडल अधिकारी ने सरकार की महत्वाकांछी योजनाओं पर पानी फेर रहे हैं।
ऐसा लगता है कि इस समय फिरोज गांधी महाविद्यालय उच्च शिक्षण संस्थान न होकर, लूट खसोट करने वाला व्यावसायिक प्रतिष्ठान का अड्डा बन गया है। जिस पर अंकुश लगना अनिवार्य है। इसके लिये कॉलेज के छात्र जिलाधिकारी से पुनः अतिशीघ्र मिलने वाले हैं। यदि सारी बातें नहीं मानी गई, तो सभी छात्र आन्दोलन के लिए एकजुट हो रहे हैं। ऐसी बातें कॉलेज कैम्पस में सुनने को मिल रही हैं।
बताते चलें कि फ़ीरोज़ गाँधी कॉलेज सरकार द्वारा अनुदानित महाविद्यालय है यह कोई स्ववित्त पोषित कॉलेज नहीं है, कि जितना चाहो अपनी मनमर्जी से फीस बढ़ा–बढ़ा कर लूटते रहो।
नि: संदेह उक्त प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच कराकर भविष्य विधवंसकों को कानूनी दण्ड दिया जाना चाहिए, जिससे पुनः ऐसी पुनरावृत्ति न हो, और विद्यार्थियों व अभिभावकों की आस्था फिरोज गांधी कॉलेज से वैसी ही बनी रहे जैसी कभी पहले हुआ करती थी।