किस प्रकार करें जया एकादशी का व्रत । पूजन विधि

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किस प्रकार करें जया एकादशी का व्रत । पूजन विधि

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत था अपना बहुत ही बड़ा महत्व माना जाता है कहा जाता है कि एकादशी व्रत करने से हमारे सारे पापों से हमें मुक्ति और छुटकारा मिलता है जो भी हमारे द्वारा दिन भर सहस्त्रअपराध किए जाते हैं उन पाप कर्मों से छूटकारा पाने के लिए हमें एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। एकादशी का व्रत हमें भूत प्रेत राक्षस योनि से भी मुक्ति दिलाता है। कब मनाया जाएगा जया एकादशी का व्रत। महीने में दो एकादशी का व्रत किया जाता है और साल में 24 एकादशी होती है जिनका हमें विधि की अनुसार पूजन अवश्य करना चाहिए । पूजा सामग्री । साफ आम का पाटा,पीला आसानका कपड़ा,तिल ,पीले पुष्प, हल्दी ,पीला चंदन, केले का मंडप, धूप ,दीप ,चने की दाल, भगवान विष्णु की प्रतिमा, या फिर आपके घर में लड्डू गोपाल हैं तो उनको भी आप रखकर पूजा कर सकते हैं क्योंकि लड्डू गोपाल भगवान विष्णु का ही स्वरुप है पीले पुष्प अगर पीले पुष्प नहीं है तो सरसों के पुष्प आप अवश्य चढ़ाएं तिल तुलसी की पत्ती तुलसी की पट्टी आप एकादशी के दिन बिल्कुल ना तोड़े इसलिए तुलसी की पट्टी को 1 दिन पहले ही तोड़ कर रख ले चंदन ,पंचामृत, तिल के लड्डू ऋतु फल इस दिन एक बात का विशेष ध्यान रखें कि अन्न से बनी चीज का भोग बिल्कुल नहीं लगना चाहिए दक्षिणआ कपूर। आईए जानते हैं व्रत कथा। कई वर्षों पहले स्वर्ग पर राजा इंद्र राज करते थे उनके लोक में सभी देवी देवता अत्यंत प्रसन्न रहते थे उनके स्वर्ग लोक में पारिजात का वृक्ष था जिसमें की हजारो फूल सुसज्जित थे और अप्सराय नृत्य गायन कर रही थी इस वृक्ष के नीचे देव राज इंद्र रसपान कर रहे थे तभी वहां पर मुख्य संगीतज्ञ चित्र सेन अपनी पत्नी मालिनी और अपने पुत्र देवांग के साथ वहां उपस्थित हुए तभी चित्र सेन की नजर पुष्पवती नामक अप्सरा पर पड़ी जो की चित्र सेन को तिरछी नजरों से देख रही थी तभी चित्रसेन पुष्पवती को देखकर उस पर मोहित हो गए तभी देवराज इंद्र की नजर उन दोनों पर पड़ी और यह देखकर देवराज इंद्र को अधिक क्रोध आया उनके क्रोध का ठिकाना नहीं रहा तभी देवराज ने कहा कि तुम लोगों ने मेरा अपमान किया है इसलिए हम तुम्हें श्राप देते हैं कि तुम अभी और इसी वक्त पिशाच योनि को प्राप्त करो पति-पत्नी के रूप में मृत्यु लोक में जाकर अपने पापों का फल भो गो यह सुनकर मालिबान और पुष्पवती बहुत ही लज्जित हुए इस समय वह दोनों पिशाच योनि में प्रवेश कर पृथ्वी पर हिमालय की चोटी पर पहुंचे जहां की अत्यंत बर्फ गिर रही थी जिससे वह ठंड के कारण कांप रहे थे और बहुत ही दुखी थे तभी उन्हें वहां एक गुफा दिखाई दी जिसमें उन लोगों ने शरण ली रात गुजारी और वह दिन जया एकादशी का दिन था हिमालय पर ना तो कुछ खाने को था और ना ही पीने को इसलिए वह भूख और प्यास के कारण और ठंड में रात भर जागने के कारण उनका वह दिन जया एकादशी का व्रत पूर्ण हुआ जिससे उन लोगों ने एकादशी का व्रत पूर्व किया उन्होंने रात भर भगवान श्री विष्णु को याद किया जिससे उन्हें प्रेत योनि से छुटकारा पाकर स्वर्गलोक की पुनः प्राप्ति हुई जब मल्यवंत और पुष्पवती स्वर्ग पर पहुंचे ऐसा देखकर राजा इंद्र को आश्चर्य हुआ और उन्होंने माल्यावन से पूछा कि तुम्हें हमारे श्राप से इतनी जल्दी मुक्ति कैसे मिल गई कैसे छुटकारा प्राप्त हुआ तो उन्होंने जया एकादशी के महत्व को बताया और कहा हम भगवान विष्णु की कृपा से प्रेत योनि से हमें छुटकारा मिला इस तरह प्रत्येक मनुष्य को जय एकादशी का व्रत जरूर करना चाहिए । एकादशी का व्रत हमें हमारे समस्त पापों से छुटकारा दिलाता है और भूत प्रेत राक्षस योनि से हमें बचाता है। एकादशी व्रत के दिन क्या नहीं करना चाहिए। एकादशी व्रत के एक दिन पहले से और एक दिन बाद तक चावल का सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए, एकादशी व्रत में चावल का प्रयोग बिल्कुल निषेध माना जाता है, एकादशी के व्रत में नमक बिल्कुल नहीं खाना चाहिए,। एकादशी व्रत में नींबू टमाटर का प्रयोग नहीं करना चाहिए, इस दिन तामसी भोजन बिल्कुल घर में नहीं बनना चाहिए, इस दिन मीठा अवश्य बनाएं जैसे सिंघाड़े के आटे का हलवा चने की दाल का हलवा और मखाने की खीर अवश्य बनाएं ,एकादशी माता को पीली चुनरी और श्रृंगार का सामान अवश्य चढ़ाएं।

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