रायबरेली | विशेष संवाददाता : रायबरेली जिले के छोटे से गांव बेनीकोपा (कबीरवैनी) से निकलकर साहित्यिक जगत में अपनी खास पहचान बना रहे युवा लेखक अभय प्रताप सिंह की संस्था ‘लेखनशाला – शब्दों की उड़ान’ आज देशभर के नवोदित रचनाकारों के लिए एक उम्मीद की किरण बन चुकी है।
लेखनशाला एक ऐसा मंच है, जो बिना किसी भेदभाव के हर साहित्यप्रेमी को अपनी रचनाएं प्रकाशित करवाने का अवसर दे रहा है। यही कारण है कि यह संस्था आज वरिष्ठ और युवा साहित्यकारों के बीच चर्चा का विषय बन गई है।
🎤 “लोगों की खुशियों का जरिया बनना चाहता हूं” — अभय प्रताप सिंह
लेखनशाला के संस्थापक अभय प्रताप सिंह का कहना है,
“मुझे हमेशा से लगता था कि समाज के लिए कुछ करना है, लेकिन दिशा समझ नहीं आ रही थी। फिर साहित्य ने मुझे राह दिखाई। मैं चाहता हूं कि हर वह व्यक्ति जो लिखना जानता है, लेकिन छप नहीं पा रहा — उसे मंच मिले।”
अभय ने अपने व्यक्तिगत संघर्ष और समाज की तकलीफों से प्रेरणा लेकर लेखन को अपनाया। उन्होंने जीवन के 8 वर्ष साहित्य को समर्पित करते हुए कई पुस्तकें भी लिखीं।
📚 लेखनशाला: हर लेखक का अपना परिवार
अभय प्रताप सिंह ने इस मंच को सिर्फ एक संस्था नहीं, बल्कि एक परिवार के रूप में देखा है। आज लेखनशाला उन रचनाकारों की आवाज बन रहा है, जो संसाधनों के अभाव में चुप थे। संस्था हर वर्ग के लेखक को प्रकाशन, मार्गदर्शन और मंच प्रदान कर रही है।
🌟 साहित्य से संवेदना तक की यात्रा
लेखनशाला की रचनाओं में गांव, गरीब, संघर्ष, और संवेदना की कहानियां दिखाई देती हैं — वही कहानियां जो समाज की हकीकत बयां करती हैं।
छोटे बच्चों की मासूमियत से लेकर बूढ़े हाथों की मेहनत तक, अभय ने साहित्य में हर भाव को शब्दों में पिरोया है।
📌 मुख्य बातें संक्षेप में:
- रायबरेली के गांव से निकले लेखक अभय प्रताप सिंह ने ‘लेखनशाला’ की शुरुआत की
- संस्था बिना भेदभाव हर लेखक को मंच दे रही है
- लेखनशाला बन रही है नवोदित साहित्यकारों की आवाज
- समाज की संवेदनाओं से प्रेरित होकर बना यह मंच आज देशभर में चर्चित
- अभय का उद्देश्य: “हर लेखक की कलम को उड़ान देना”
लेखनशाला आज उस सोच का नाम है, जहाँ रचना सिर्फ शब्द नहीं, समाज की आवाज बनती है। और अभय प्रताप सिंह जैसे युवा साहित्यकारों की पहल से हिंदी साहित्य को मिल रही है नई दिशा।
