Kns Desk: बड़े किसान या कारोबारी टिशू कल्चर लैब शुरू कर अपना भविष्य संवार सकते है। केंद्र सरकार राष्ट्रीय बागवानी मिशन कृषि को बढ़ावा देने के लिए जिलास्तर पर टिशू कल्चर लैब लगाने के लिए बढ़ावा दे रही है। वित्तीय वर्ष 2019 – 20 में टिशू कल्चर लैब की शुरुआत की गई। योजना के अनुसार इस प्रोजेक्ट पर 2.50 करोड़ रुपए की लागत आएगी । सरकार की ओर से एक करोड़ रुपए का अनुदान दिया जाएगा।
राष्ट्रीय बागवानी मिशन की यह एक महत्वपूर्ण योजना मानी जा रही है। जिलास्तर पर अब तक कृषि से संबंधित कोई योजना ऐसी नहीं थी जिसमें एक करोड़ रुपए तक का अनुदान उपलब्ध हो।जिला उद्यान विभाग के अनुसार आवेदक टिशू कल्चर लैब योजना के लिए आवेदन कर सकते है। आवेदन जिला उद्यान कार्यालय में लिया जाएगा।
जिला उद्यान अधिकारी के अनुसार राष्ट्रीय बागवानी लैब तैयार करने के लिए गाइड लाइन जारी किया गया है। इसके अनुसार लैब को तैयार किया जाना है। अगर आवेदक का चयन किया जाना है। और आवेदक का चयन होता है तो उन्हें लैब तैयार करने की तकनीक जानने के लिए विभाग की ओर से राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत टिशू कल्चर लैब का भ्रमण कराया जायेगा। विस्तृत जानकारी के लिए किसान जिला उद्यान कार्यालय में संपर्क कर सकते है।
टिशू कल्चर लैब तैयार करने के लिए कितनी भूमि की आवश्यकता पड़ेगी ————–
जिला उद्यान अधिकारी के अनुसार आदर्श टिशू कल्चर लैब तैयार करने के लिए ढाई एकड़ भूमि की आवश्यकता पड़ेगी। इसमें लैब, नर्सरी व पोली हाउस का निर्माण किया जाएगा। टिशू कल्चर लैब की खासियत है कि इससे तैयार होने वाले पौधे निरोगी होते है। 35 से 40 वर्ष में तैयार होने वाले पौधे काम अवधि में तैयार हो रहे है। दो प्रभेदों का क्रास कराकर लैब की मदद से एक उन्नत व फलदार पौधों की नस्ल तैयार करने में आसानी होती है।
टिशू कल्चर लैब रिसर्च सेंटर की तरह करता है काम
टिशू कल्चर लैब एक रिसर्च सेंटर की तरह काम करता है। लंबे समय में तैयार होने वाले पौधों के बीज का अनुसंधान कर उससे एक नए किस्म का बीज तैयार किया जाता है।
जब बीज तैयार हो जाता है तो उसे एक कांच के बर्तन में बीज के अनुकूल तापमान पर लैब में रखा जाता है। जब बीज 15 से 25 दिन का हो जाता है तो उसे दूसरे लैब में निर्धारित समय के लिए रखा जाता है। यहां बीज पौधा में बदल जाएगा। इस लैब से पौधा को पॉली हाउस में 45 दिन के लिए रखा जाता है। इसके बाद पौधे को खुले आसमान के नीचे नर्सरी में रखा जाता है जहां से उन्नत किस्म का पौधा तैयार हो जाता है। समय अवधि पौधे की किस्म पर निर्भर करता है। इसमें बदलाव भी संभव है।