रबी की फसलों में कीट/रोग के प्रकोप से बचाव की एडवाइजरी जारी

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रायबरेली : जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने बताया कि वर्तमान समय में गिरते हुए तापमान के साथ-साथ आर्द्रता बढ़ने के कारण रबी की फसलों में कीट/रोग के प्रकोप की सम्भावना बढ़ गयी है। अतः यह नितान्त आवश्यक है कि इन सामयिक कीट/रोगों की पहचान कर इनसे होने वाली क्षति से बचाव किया जाए। इस हेतु सुझाव एवं संस्तुतियों की एडवाइजरी जारी की जा रही है-
आलू की अगेती एवं पछेती झुलसा- अगेती झुलसा मे निचली व पुरानी पत्तियों पर छोटे अण्डाकार भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते है। प्रभावित कन्दों में धब्बे के नीचे का गूदा भूरा एवं शुष्क हो जाता है। बदली युक्त मौसम में 10 से 20 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान एवं 80 प्रतिशत से अधिक अपेक्षित आर्द्रता की दशा में पछेती झुलसा के सम्भावना बढ़ जाती है। अगेती एवं पछेती झुलसा के नियंत्रण हेतु मैंकोजेब 75 प्रति डब्ल्यू०पी 02 किग्रा अथवा कॉपर आक्सीक्लोराइड 50 प्रति० डब्ल्यू०पी० की 2.5 किग्रा मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 500 -750 लीटर पानी में घोलकर 12-15 दिवस के अंतराल पर छिड़काव करें। फसलों को पाला से बचाव के लिए नियमित हल्की सिंचाई करें ।
राई/सरसों का माह कीट- इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ पौधों के कोमल तनों, पत्तियों, फूलों एवं नई कलियों के रस चूसकर कमजोर कर देते हैं। कीट मधुस्राव भी करते है जिस पर काली फफूंद उग जाती है, जिससे प्रकाश संश्लेषण में बाधा उत्पन्न होती है फलस्वरूप पौधे को पर्याप्त भोजन नही मिल पाता है। इसके नियंत्रण हेतु एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रति० ई०सी० की 2.5 लीटर मात्रा को पानी में घोलकर छिड़काव करें। रासायनिक नियंत्रण हेतु डाईमेथोएट 30 प्रति० ई०सी० अथवा क्लोरपाइरीफास 20 प्रति० ई०सी की 01 लीटर मात्रा को 600-750 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
राई/सरसों की फसल का अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग- इस रोग में पत्तियों पर दोनों तरफ गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते है जिसमें गोल-गोल धब्बा जैसे स्पष्ट नजर आता है जो आगे चलकर तने एवं फलियों पर भी फैल जाता है। इसके नियंत्रण हेतु जिनेब 75 प्रति० डब्लू पी की 02 किग्रा० की मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से लगभग 600-750 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
मटर की फसल में पावडरी मिल्ड्यू रोग- इस रोग के लक्षण छोटे सफेद चूर्णी धब्बों के रूप में पत्तियों पर होते है जो संख्या एवं आकार में बड़े होने पर एक दूसरे से मिल जाते है। रोगग्रस्त पौधों की टहनियों पर जो फलिया आती है वे प्रायः बहुत छोटी व सिकुड़ी हुए होती है। फलिया पकने से पहले ही सूख कर नीचे गिर जाती है। इसके नियंत्रण हेतु जिनेब 75 प्रति० डब्लू पी की 02 किग्रा० अथवा कॉपर आक्सीक्लोराइड 50 प्रति० डब्ल्यू०पी० की 03 किग्रा० मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 500-750 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
गेहूँ में सकरी एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के नियंत्रण- इस हेतु सल्फोसल्फ्यूरॉन 75 प्रतिशत डब्लू पी 40 ग्राम प्रति हेक्टेयर एवं मेटसल्फ्यूरान मिथाइल 20 प्रतिशत डब्लू०पी० 20 ग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा को साथ में 350-400 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के 20 से 25 दिनों के अंदर छिड़काव करें। यदि गेहूँ की बुवाई 35 से 40 दिन की हो गई हो तो, सकरी एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के नियंत्रण हेतु क्लोडिनाफॉप 15 प्रतिशत 400 ग्राम प्रति हेक्टेयर एवं मेटसल्फ्यूरान मिथाइल 20 प्रतिशत डब्लू०पी० 20 ग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा को साथ में 400 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने कहा है कि किसान भाई फसल में किसी भी प्रकार की समस्या होने पर कृषि विभाग (कृषि रक्षा अनुभाग) द्वारा संचालित सहभागी फसल निगरानी एवं निदान प्रणाली (पी०सी०एस० आर०एस०) पर अपना नाम, ग्राम का नाम, विकास खण्ड एवं जनपद का नाम लिखते हुए कीट/रोग के फोटो के साथ मोबाइल नम्बर-9452247111 एवं 9452257111 पर व्हाट्सएप/मेसेज से भेजें, आपकी समस्या का समाधान 48 घण्टे में आपके मोबाइल नम्बर पर एस०एम०एस० के माध्यम से प्रेषित किया जायेगा।

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