दहेज कोसती वरमाला (लघुकथा संग्रह)

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संजय कुमार-साहित्यिक-माता पिता के आशीर्वाद से मुकाम हासिल करने की स्वीकारोक्ति के साथ ही शिक्षक /साहित्यकार अशोक कुमार ढोरिया जी के प्रथम लघुकथा संग्रह “अँगूठे का दर्द” के बाद अगले लघुकथा संग्रह “दहेज कोसती वरमाला” अपने नाम के अनुरूप मुखपृष्ठ के साथ अंदर के लेखक ने अपने मन के भावों को रेखांकित करते हुए साफ कर दिया है कि संग्रह की रचनाओं के माध्यम से केवल सामाजिक बुराइयों को मुखरित करना ही एक मात्र उद्देश्य है, न कि किसी भी व्यक्ति या स्तर पर किसी की भावना को ठेस पहुंचाना।
आ.बलबीर सिंह वर्मा ‘वागीश’ जी के शब्दों में संग्रह की लघुकथाएं पृष्ठभूमि से जुड़ी प्रेरक ही नहीं अनुकरणीय भी हैं।
आ.राकेश कुमार ‘जैनबंधु’ का विचार है कि संग्रह की लघुकथाएं अंतर्मन पर दस्तक देती हैं।
वरिष्ठ साहित्यकार/कवि आ.त्रिलोक फतेहपुरी का मानना है कि संग्रह की लघुकथाएं समाज का आइना हैं।
वरिष्ठ कवि/साहित्यकार हलचल हरियाणवी अपने आशीर्वचन में कहते हैं कि सही मायने में यह संग्रह आज की युवा पीढ़ी को संस्कार देने में समर्थ है।

      87 लघुकथाओं को अपने में समाहित किए हुए “दहेज कोसती वरमाला” संग्रह की लघुकथाएं में  लेखक ने अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को महसूस ही नहीं किया, बल्कि अपने भीतर की छटपटाहट, अकुलाहट और चिंता को लुघुकथाओं के माध्यम से समाज को आइना दिखाने का जज्बा भी दिखाया है।
    
      विभिन्न विषयों पर गहन चिंतन और परिवार, समाज, राष्ट्र के साथ संबंधों, परिस्थिति और घटनाओं पर पैनी नजर रखने और अपनी जिम्मेदारियों के प्रति समर्पित रहकर ढोरिया जी ने अपनी धारदार लेखनी से चेतना जगाने का जैसे वीणा अपने कंधों पर लिया है।  संग्रह की लघुकथाएं सोद्देश्य की दिशा तय करती प्रतीत होती हैं, तो पाठकों को अपनी और अपने आसपास की घटित घटना, या दुश्वारियों सी लगती हैं।जो पाठकों को बांधे रखने में समर्थता का द्योतक है।
  विधा अनुसार सीमित शब्दों के दायरे में अपनी लेखनी का पुनः लोहा मनवाने की जिद सी ठाने बैठे ढोरिया जी सचमुच ही अपने उद्देश्य में सफल रहे हैं।
      ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति न होगा कि प्रस्तुत संग्रह पठन के बाद पाठकों की अपेक्षाएं निश्चित ही ढोरिया जी से बढ़ेंगी और वे अपने लेखकीय दायित्व को और चिंतनशीलता के साथ आगे बढ़ेंगे और अपने अन्यान्य संग्रह के साथ पाठकों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराते ही रहेंगे।
   संग्रह के आखिरी कवर पेज पर उनका परिचय उनकी योग्यता का स्वयं ही प्रदर्शन करता है।
      संक्षेप में कहें तो ‘दहेज कोसती वरमाला’ या इस तरह के अन्य संग्रहों पुस्तकालयों में जगह मिलनी चाहिए जिससे न केवल पाठकों का बल्कि समाज का भी भला होगा। क्योंकि हर पाठक पढ़ते हुए अपने आसपास की कथा/घटना को यथार्थ में महसूस करने को बाध्य होता है, तब उसके व्यवहारिक सोच और बर्ताव में भी बदलाव साफ देखने को मिल ही जाता है।
   जिज्ञासा प्रकाशन गाजियाबाद से प्रकाशित 109पृष्ठों के संग्रह की कीमत मात्र रु. 200 रखी गई है,जिसे वर्तमान परिस्थितियों के सर्वथा योग्य ही माना जाना चाहिए।
   प्रस्तुत संग्रह की सफलता के विश्वास के साथ अशोक ढोरिया जी को सतत दायित्व बोध के साथ रचना कर्म जारी रखते हुए आने वाले अगले संग्रहों हेतु अग्रिम शुभकामनाएं।

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