स्वाधीनता मनुष्य की मूलभूत चेतना है-महामहिम आनंदीबेन पटेल

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पुस्तक ‘स्वाधीनता आंदोलन और साहित्य’ पर राजभवन में कार्यक्रम

रायबरेली : साहित्य जहां एक और दस्तावेजी प्रमाण प्रस्तुत करता है वहीं वह भविष्य के लिए दृष्टि भी देता है, रास्ता दिखाता है। भारत की स्वतंत्रता में साहित्य का बड़ा योगदान रहा है। प्रत्येक भारतीय भाषा ने इस आंदोलन में सकारात्मक भूमिका निभाई है। एक भाषा भाषी को यह पता नहीं होता कि दूसरी भाषाओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में क्या भूमिका निभाई है। सभी भाषाओं के योगदान को एक साथ एकत्रित करके स्वाधीनता आंदोलन और साहित्य नामक पुस्तक संपादित की गई है।उत्तर प्रदेश की राज्यपाल महामहिम आनंदीबेन पटेल ने राज भवन में पुस्तक पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि, “स्वाधीनता मनुष्य की मूलभूत चेतना है। आज की नई पीढ़ी के लिए यह जानकारी आवश्यक है कि देश की स्वतंत्रता प्राप्ति में भाषाओं की भूमिका कैसी रही है। युवा लेखक ने भारत की सभी भाषाओं के अवदान और इतिहास पर महत्वपूर्ण पहल की है। इस उपलब्धि के लिए मैं सम्पादक डॉ. श्यामबाबू शर्मा को बधाई व शुभकामनाएं देती हूं। यह पुस्तक प्रासंगिक है और नई पीढ़ी को दिशा देने के लिए उपयुक्त है। यह पुस्तक स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास का एक मौलिक दस्तावेज है।”
उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक में सुदूर पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक जन जागरण के कार्य का विश्लेषण किया गया है। इसमें अवधी, उर्दू, असमिया, उड़िया, कन्नड़, कश्मीरी, गुजराती, तमिल, तेलुगु, पंजाबी, बघेली, बुंदेलखंडी, बांग्ला, निमाड़ी, मणिपुरी, मराठी, मलयालम, संथाली, संस्कृत, सिंधी, हिन्दी सहित कश्मीर से कन्याकुमारी तक की विविध भाषाओं के साहित्य और उनके लोक साहित्य, लोक बोलियों लोक गीतों के साथ-साथ क्रांतिकारी साहित्य, प्रवासी साहित्य, नाटक-रंगमंच, सिनेमा और हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं इत्यादि के माध्यम से स्वाधीनता के प्रति जो बिगुल फूंका गया उसका पद्मश्री और साहित्य अकादमी सहित प्रतिष्ठित सम्मानों से विभूषित विद्वानों द्वारा दस्तावेजीकरण ही नहीं वरन उन अनछुए प्रसंगों का शोध अनुशीलन-भी है जो अभी तक अनुद्घाटित रहे हैं।’
डॉ श्याम बाबू शर्मा ने इस अवसर पर इस पुस्तक की रचना प्रक्रिया की जानकारी दी। आजादी के अमृत महोत्सव पर प्रकाशित यह ग्रंथ पठनीय, संग्रहणीय और शोध दर्शन का दस्तावेज है।

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